वेद विज्ञान लेखमाला: समन्वित दृष्टिकोण
भारत की अनादिकालीन सनातन संस्कृति में दो धाराएं सदा से सतत प्रवाहमान है जिन्हे वार्हत और आर्हत अथवा वैदिक व श्रमण संस्कृति के नाम से जाना जाता है. जब दो धाराएं सामानांतर बहती है तो उनमे एक जैसे अनेक तत्व होते हैं तो अंतर्विरोध भी. अनेक स्थानों पर दोनों एक जैसे दिखते हैं, होते हैं और कई स्थानों पर मतभिन्नता भी होती है. यही इस सामानांतर धाराओं का वैशिष्ट्य भी है और सौंदर्य भी. और यही भारतवर्ष का, इस आर्यावर्त की पावन भूमि का शाश्वत उद्घोष है और यही इसे वसुधैव कुटुम्बकम का उद्घोष करनेवाला विश्वगुरु भी बनता है.
पाश्चात्य विद्वान भारत की इस खूबी को पहचान ही नहीं पाए अथवा जानबूझ कर इसे अनदेखा किया. इन दोनों संस्कृतियों की विभाजक रेखा अत्यंत सूक्ष्म है और कब यह मिल जाती है और कब अलग हो जाती, यह पहचानना अत्यंत कठिन है. ये बात इन संस्कृतियों और इतिहास की गहराई में गोता लगानेवाले मर्मज्ञों को ही ज्ञात होता है.
अर्हत, ऋषभ, भरत, अरिष्टनेमि, वातरसन जैसे श्रमण (आर्हत या जैन) संस्कृति में बहुप्रचलित शब्द वेदों, पुराणों, श्रीमद्भागवद आदि वैदिक ग्रंथों में बहुलता से मिलता है. इन शब्दों के अर्थ में मतभिन्नता भी है. इस लेखमाला का उद्देश्य समन्वित दृष्टिकोण से ऋग्वेद, यजुर्वेद, पुराण, श्रीमद्भागवद आदि ग्रंथों में पाए जानेवाले इन शब्दों के अर्थों का तार्किक विश्लेषण कर समन्वय के तत्व स्थापित करना है.
वेद-विज्ञान लेखमाला के लेखों की सूचि
1. यह लेख 'ऋषभाष्टकम्' स्तोत्र के मूल श्लोकों एवं उसका हिंदी अर्थ प्रदान करता है, जिससे पाठक भगवान ऋषभदेव की महिमा और गुणों को समझ सकते हैं। इस स्तोत्र में ऋग्वेद के आधार पर तीर्थंकर ऋषभदेव की स्तुति की गई है.
ऋषभाष्टकम् स्तोत्र अर्थ सहित
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2. इस लेख में ऋग्वेद की एक विशेष ऋचा का विश्लेषण किया गया है, जिसमें 'अर्हंत' शब्द का उल्लेख है, जो जैन धर्म में तीर्थंकरों के लिए प्रयुक्त होता है।
ऋग्वेद में अर्हंतवाची एक ऋचा का अर्थ
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3. यह लेख ऋग्वेद की एक ऋचा का शब्दार्थ, अन्वयार्थ और व्याकरणिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिससे पाठक उसकी गहराई से समझ प्राप्त कर सकें।
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3. यह लेख ऋग्वेद की एक ऋचा का शब्दार्थ, अन्वयार्थ और व्याकरणिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिससे पाठक उसकी गहराई से समझ प्राप्त कर सकें।
विभिन्न दृष्टिकोणों से ऋग्वेद की ऋचा का विश्लेषण – शब्दार्थ, अन्वयार्थ एवं विस्तृत व्याकरण सहित
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4. इस लेख में ऋग्वेद की ऋचा 70.74.22 का विश्लेषण किया गया है, जिसमें 'ऋत', 'वृषभ' और 'धर्मध्वनि' जैसे महत्वपूर्ण वैदिक अवधारणाओं की व्याख्या की गई है।
ऋत, वृषभ और धर्मध्वनि: ऋग्वेद की ऋचा (70.74.22) का व्याख्यात्मक अध्ययन
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5. यह लेख आचार्य कोत्स और आचार्य यास्क के वेदों पर विचारों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है, जिससे वेदों की व्याख्या की प्राचीन परंपराओं की समझ मिलती है।
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6. इस लेख में गणधरवाद में वेदों की व्याख्या की विभिन्न परंपराओं का विश्लेषण किया गया है, जो गणधरवाद ग्रन्थ में वेदों के प्रति दृष्टिकोण को दर्शाता है।
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7. यह लेख ऋग्वेद के दो महत्वपूर्ण मंत्रों का व्याकरणिक, भाषाशास्त्रीय और दार्शनिक विश्लेषण करता है। इसमें प्रचलित सामान्य अर्थ और समीचीन दृष्टि से व्याख्या प्रस्तुत की गई है, जो आत्मबल, संयम और विकारों के नाश को दर्शाती है।
ऋग्वेद के दो महत्वपूर्ण मंत्र: व्याकरण, अर्थ एवं जैन दृष्टिकोण
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8. वातरशनाः शब्द ऋग्वेद में नग्न मुनियों के लिए प्रयुक्त हुआ है, जिसका अर्थ है "जो वायु को ही वस्त्र मानते हैं।" यह दिगंबर जैन मुनियों से मेल खाता है, जो पूर्ण संयम और आत्मबल के प्रतीक हैं। यह लेख वैदिक और जैन संदर्भ में इसकी व्याख्या करता है।
ऋग्वेद मंडल 10, सूक्त 136 के 7 मंत्रों का जैन दृष्टिकोण से विश्लेषण
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9. स्वस्ति मंत्र केवल लौकिक मंगलकामना नहीं, बल्कि आत्मोत्थान और मोक्षमार्ग की प्रेरणा है। तीर्थंकर अरिष्टनेमि, अहिंसा और वैराग्य के प्रतीक हैं, जिनकी वाणी अज्ञान व राग-द्वेष को समाप्त करती है। यह लेख स्वस्तिवाचन के आध्यात्मिक रहस्य और आत्मकल्याण की गूढ़ प्रेरणा को उजागर करता है।
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10. ऋग्वेद 7.18.22 की यह ऋचा केवल दशराज्ञ युद्ध का विवरण नहीं, बल्कि आत्मा और इन्द्रियों के बीच संघर्ष का आध्यात्मिक संकेत भी देती है। "अर्हन्नग्ने" केवल लौकिक अग्नि नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि की ज्वाला है। "पर्येमि रेभन्" में दिव्यध्वनि का प्रसार छुपा है, जो मोक्षमार्ग की दिशा में प्रेरित करता है।
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11. यजुर्वेद (18.27) में उत्तम बैल, गाय और अन्य पशुओं की प्रार्थना की गई है, जो वैदिक समाज की आर्थिक और आध्यात्मिक समृद्धि के प्रतीक थे। 'ऋषभ' शब्द का विशेष महत्व है, जो जैन परंपरा में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से संबंधित है। उन्होंने कृषि, पशुपालन और विभिन्न कलाओं की शिक्षा देकर मानव सभ्यता की नींव रखी।
यजुर्वेद (18.27): ऋषभदेव, कृषि संस्कृति एवं वैदिक संदर्भ https://jyoti-kothari.blogspot.com/2025/03/1827.html
12. भगवान ऋषभदेव ने मानव समाज को असि (शस्त्रविद्या), मसि (लेखन कला), कृषि (खेती और पशुपालन) और शिल्प (कला एवं विज्ञान) की शिक्षा दी। उन्होंने पुरुषों को 72 और स्त्रियों को 64 कलाएँ सिखाईं, जिससे समाज का बहुआयामी विकास हुआ। इससे मा नव सभ्यता संगठित हुई और समाज निर्माण के आधारस्तंभ स्थापित हुए।
असि, मसि, कृषि के आद्य प्रणेता ऋषभदेव: मानव सभ्यता और समाज निर्माण के आधारस्तंभ https://jyoti-kothari.blogspot.com/2025/03/blog-post_17.html
13. यहाँ प्रस्तुत यजुर्वेदीय मंत्रों में 'ऋषभ' शब्द का उल्लेख करते हुए भगवान ऋषभदेव की वैदिक संस्कृति में प्रतिष्ठा को दर्शाया गया है। यजुर्वेद के मन्त्रों का यह संकलन जैन और वैदिक परंपराओं के समन्वय का महत्वपूर्ण प्रयास है, जो ऋग्वेद और यजुर्वेद के ऋषभवाची मंत्रों के माध्यम से इस संबंध को उजागर करता है।
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14. ऋग्वेद का दशराज्ञ संग्राम केवल एक ऐतिहासिक युद्ध नहीं, बल्कि आत्मा और इन्द्रिय-विकारों के संघर्ष का अद्भुत प्रतीक है। यह लेख सुदास की विजयगाथा के माध्यम से आत्मबल, सत्य और धर्म की स्थापना का ऋग्वेदीय संदेश सामने लाता है।
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15. 'भरत' शब्द वैदिक, पौराणिक और जैन साहित्य में भिन्न अर्थों में प्रतिष्ठित है। ऋग्वेद भाष्य में 'भरत' वीर क्षत्रिय गण है, वहीं पुराणों व जैन परंपरा में वह ऋषभदेव पुत्र चक्रवर्ती भरत हैं। यह लेख इन दोनों दृष्टियों का ऐतिहासिक और दार्शनिक विश्लेषण करता है।
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16. क्या आप जानते हैं भारत का नाम कैसे पड़ा? यह लेख वेद, पुराण और जैन आगमों से प्रमाणित करता है कि 'भारतवर्ष' का नामकरण दुष्यंत पुत्र भरत से नहीं, बल्कि ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत से हुआ। जानिए इस गौरवशाली इतिहास की सच्चाई।
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17. यह आलेख वैदिक परंपरा में अग्नि पुराण की महत्ता को रेखांकित करता है। ऋक् और यजुः संपदा से समृद्ध यह पुराण धर्म, नीति, आयुर्वेद, वास्तु, धनुर्वेद, ज्योतिष और तंत्र सहित विविध विषयों का गहन संगम है, जो वैदिक मूल्यों का व्यवहारिक रूप में अनुपम प्रस्तुतीकरण करता है।
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18. पुराण भारतीय संस्कृति और धर्म का जीवंत दर्पण हैं। जानिए पुराण शब्द का अर्थ, शास्त्रीय लक्षण, रचनाकाल, 18 महापुराण और उपपुराणों की विस्तृत सूची, प्रमुख विषयवस्तु और ऐतिहासिक महत्व। यह लेख वेदों के पूरक इन ग्रंथों का सार प्रस्तुत करता है।
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Thanks,
भारतीय नववर्ष लेखमाला के लेखों की सन्दर्भ एवं लिंक सहित सूचि
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser at Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also an ISO 9000 professional)
1 comment:
According yo you ,who is the writer of Ved,are there four or just one, or is it written by a Jain Tirthankar or a Chakraborty?
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